जलागम प्रबंधन : एक दृष्टिकोण
जलागम प्रबन्धन में सामाजिक/पारिस्थितिकी आर्थिक विज्ञान को दृष्टिगत रखते हुये जलागम क्षेत्र के अन्तर्गत समस्त संसाधनों का उपचार तथा उपयोग समग्र, सम्पूर्ण तथा सतत् रूप से ग्राम पंचायतों के समस्त हितभागियों की सहभागिता से किया जाता है। जलागम प्रबन्धन का कार्य सम्पूर्ण जलागम क्षेत्र की पारिस्थितिक प्रणाली जहां से मूल जल स्रोत तथा उसके सन्निकट धार (रिज) घाटी की तरफ से जल के प्रवाह को ध्यान में रखकर किया जाता है। जलागम प्रबन्धन में जलागम के अन्तर्गत समस्त श्रेणी की भूमि एवं जल के उपयोग एवं उनके सुधार का निर्णय ग्राम पंचायत के समस्त हितभागियों द्धारा पारस्परिक विचार-विमर्श के उपरान्त निर्णय लिया जाता है। |
परियोजना का अभिप्राय
उत्तराखण्ड विकेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना का उद्देश्य सामाजिक रूप से स्वीकार्य, संस्थागत एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सम्पोषित अवधारणा के माध्यम से चयनित जलागम क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों की उत्पादक क्षमता में सुधार एवं विकास कर ग्रामीणों की आय में वृद्धि करना है। इस परियोजना का मुख्य अभिप्राय स्थानीय संसाधनों के सतत् प्रबन्धन द्वारा भूमि की उत्पादकता में वृद्धि तथा ग्रामीण समुदाय की आय में वृद्धि करना, के साथ-साथ ग्राम पंचायतों को सामथ्र्यवान बनाना है। भूमि एवं जल संरक्षण तथा वन एवं वानस्पतिक आवरण में सुधार से जलागम क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों की उत्पादकता में वृद्धि होगी। फलस्वरूप स्थानीय परिवेश के जीवन स्तर में गुणवत्ता में सुधार आयेगा और उनके आय स्तर को भी बढाया जा सकेगा। चुंकि कृषि एवं खेती सम्बन्धी क्रिया कलाप ही लक्ष्य क्षेत्र में जीविकोपार्जन के मुख्य संसाधन हैं। अतः परियोजना के उद्दश्यों की पूर्ति के लिये भूमि सम्बन्धी क्रिया कलाप तथा पशुधन विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। परियोजना का लक्ष्य खेती की प्रणाली में सुधार, जैविक खेती, उच्च मूल्य की फसलें, मूल्य वृद्धि एंव बाजार से सम्पर्क आदि होगा। इसके अतिरिक्त परियोजना के मुख्य सहयोगी जैसे व्यक्ति/संस्था परियोजना गतिविधियों में पारिस्थितिकीय एवं आर्थिक सम्पोषणता सुनिश्चित करने हेतु पूंजीगत तथा सम्पत्ति के रख-रखाव से सम्बन्धित आपूर्ति व्यय में अंशदान करेंगें। समाज के कमजोर एवं निर्बल वर्ग सीधे जलागम के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है, अतः इस बात का ध्यान रखना होगा कि इन वर्गो को योजना निर्माण, कार्यान्वयन तथा जलागम क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन से प्राप्त होने वाले लाभ/उत्पादों के बंटवारे में सम्मिलित किया जाये।
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परियोजना अवधि :-
परियोजना वर्ष 2014-15 से 2021-22 तक 7 वर्षो के लिये संचालित की जायेगी।
परियोजना लागत- परियोजना की कुल लागत 170 मिलियन US डालर (लगभग रू0 220 करोड़) है। जिसके सापेक्ष 121.020 मिलियन US डालर (लगभग रू0 727 करोड) की प्रतिपूर्ति विश्वबैंक द्वारा की जायेगी तथा 45.8 मिलियन US डालर (लगभग रू0 275 करोड) राज्य सरकार व 3 मिलियन US डालर (लगभग 18 करोड) के समतुल्य धनराशि लाभार्थी अंशदान से प्राप्त होगी।
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ग्राम पंचायत को निधि आवंटन:-
यह परियोजना ग्राम पंचायत के अन्दर तथा बाहर के सभी क्षेत्रों को उपचारित करेगी, जो एकीकृत जलागम प्रबन्धन के लिये सुसंगत हो। जलागम उपचार की परियोजना के अन्तर्गत आवंटित कुल धनराशि से प्रत्येक ग्राम पंचायत को विशिष्ट धनराशि आवंटन हेतु दो मानक इस्तेमाल किये गये है। विशिष्ट ग्राम पंचायत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल को 65 प्रतिशत तथा जनसंख्या को 35 प्रतिशत अधिभार दिया गया है।
सूक्ष्म जलागम के अन्तर्गत आने वाले ऐसे क्षेत्रों के उपचार के लिये, जो ग्राम पंचायत की सीमारेखा से बाहर है, जलागम प्रबन्ध निदेशालय के पास अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध है। यह धनराशि ग्राम पंचायत/वन पंचायत द्वारा सूक्ष्म जलागम क्षेत्र के अन्तर्गत वर्णित उक्त स्थलों में (अन्तर ग्राम पंचायत स्थल) सम्पूर्ण जलागम का उपचार सुनिश्चित करने में इस प्रकार प्रयोग की जायेगी, जो ग्राम पंचायत जलागम विकास परियोजना की पूरक हो। ग्राम पंचायतें एवं वन पंचायते इस धनराशि के उपयोग हेतु सम्बन्धित बहुउद्देशीय दल से विचार-विमर्श के उपरान्त एक योजना विकसित करेगी तथा सम्बन्धित वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी को अनुमोदनार्थ प्रस्तुत करेगी। (अन्तर ग्राम पंचायत) क्षेत्रों में परियोजना गतिविधियों का कार्यान्वयन सम्बन्धित ग्राम पंचायत अथवा वन पंचायत द्वारा किया जायेगा।
निर्बल वर्ग कोष के नाम से एक प्राविधान इस उद्देश्य के साथ किया गया है, जिससे महिलाओं/अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति, गरीब जनता को सहायता पहुचाने वाले क्रिया कलापों को धन उपलब्ध कराया जा सके। ये क्रिया कलाप आय अर्जक के सूक्ष्म उद्यम ,क्षमता विकास कार्यक्रम, बाजार समर्थन कार्यक्रम और ढांचागत सुविधाये हो सकते है। निर्बल वर्ग कोष का उद्देश्य परियोजना के माध्यम से गांव में सामाजिक समरसता में वृद्धि करना और साथ ही उनकी सहायता करना है, जो जलागम प्रबन्धन क्रिया कलापों से या तो पीछे छूट जाते है अथवा बहुत कम लाभ उठा पाते हैं।
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